आज सरिता का घर खूब सजा था घर के सभी सदस्यों के साथ गांव,कुटुम्ब के लोगों को भी न्यौता दिया गया, घर किसी रेल के डिब्बे की तरह खंचाखच भरा हुआ था इधर सरिता घर के काम में सब का हाथ बँटा रही थी सरिता बेहद साधारण सी लड़की थी पर पढ़ाई लिखाई में बहुत होशियार थी उसके साथ-साथ वह घर के कामों में भी निपुण थी सिलाई कढ़ाई भी वह बखूबी जानती थी सर्वगुण संपन्न होने का उसे लेश मात्र भी घमंड न था वह घर में आए लोगों से हमेशा लड़कियों को पढ़ाने और आगे बढ़ाने की बात करती थी आज भी उसने यह कहने का मौका ना छोड़ा।
गांव की एक चाची यूं ही सबके बीच बोल उठी,” लो भाई मोहन की मां अब तो मोहन की नौकरी भी लग गई मेरी मानो तो पहले सरिता का ब्याह कर अपना धर्म निभाओ “
सरिता यह सब सुन मन में खींज लिए बोली,” वाह चाची मैं कोई बोझ हूँ जो मुझे दान कर मां अपना धर्म निभाएगी, मुझे अभी बहुत पढ़ना है लड़कियोंं को आज केेेे दौर में शिक्षित करना बहुत जरूरी है आखिर लड़का लड़की एक समान है उनमें क्या भेद पढ़ लिखकर लड़कों सेे ज्यादा लड़़कियां नाम रोशन करती हैं “
सरिता यह सब सुन मन में खींज लिए बोली,” वाह चाची मैं कोई बोझ हूँ जो मुझे दान कर मां अपना धर्म निभाएगी, मुझे अभी बहुत पढ़ना है लड़कियोंं को आज केेेे दौर में शिक्षित करना बहुत जरूरी है आखिर लड़का लड़की एक समान है उनमें क्या भेद पढ़ लिखकर लड़कों सेे ज्यादा लड़़कियां नाम रोशन करती हैं “
“फिलहाल तो तेरे भाई ने नाम रोशन कर दिखाया है हा हा हा हा ” चाची अट्टहास करती हुई पूरियां बेलने लगी ।
“इन लोगों को समझाना अपना पैर कुल्हाड़ी पर मारने के समान हैं सरकारी नौकरी होती तो शायद सब सुन लेते मेरी “बड़बड़ करती सरिता अंदर चली गई और किताबें खोल पड़ने लगी ।
मोहन सरिता का बड़ा भाई था जिसने पढ़ाई कब की छोड़ दी थी बस छोटा-मोटा काम करके घर का थोड़ा बहुत खर्चा निकाल रहा था आज घर में चहल-पहल मोहन की सरकारी नौकरी लगने की वजह से थी मोहन की नौकरी कलेक्ट्रेट में चपरासी के पद पर लग गई, वह महज आठवीं पास था उसके आगे उसका मन पढ़ाई में नहीं लगा यह नौकरी भी उसे काफी सिफारिशों के बाद मिली थी ।
सरिता और मोहन के पिता का स्वर्गवास हुए पााँच वर्ष हो गए थे उनके घर का खर्चा उनकी पुश्तैनी जमीन से चल रहा था आज सरिता और मोहन की माँ बहुत खुश थी क्योंकि उनके घर मेंं ही क्या उनके गांंव और उनके कुटुंंब मे भी किसी की सरकारी नौकरी नहींं लगी थी और मोहन उस मध्यम वर्गीय परिवार में सरकारी नौकरी पाने वाला एकमात्र व्यक्ति था ।
सरिता को भाई की नौकरी लगने की खुशी तो थी पर इस बात का दुख भी था कि लड़की होने की वजह से उसे अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिए घर परिवार में बहुत विवाद करना पड़ता है अब भाई की सरकारी नौकरी लगते ही मोहन का दबदबा और बढ़ जाएगा और शायद सरिता की पढ़ाई बंद हो जाए वह यह सब सोच ही रही थी कि तभी माँ की आवाज आई

“सरिता ओ सरिता अगर तुझे इन पोथी पत्रों से फुर्सत मिल गई हो तो जल्दी काम निपटा “
आई मां
“मैं कहती हूँ कि तेरी यह किताबें तुझे क्या लॉर्ड गवर्नर बना देंगी देख मोहन को आखिर सरकारी नौकरी मिल ही गई ना, अरे पढ़ने लिखने से कुछ नहीं होता यह तो भाग्य की बात है अगर तेरे चाचा जी तेरी पढ़ाई के लिए मुझे इतना जोर ना देते तो मैं न जाने कब का तेरा ब्याह करा चुकी होती पर अब तू चिंता मत कर तेरे भाई की सरकारी नौकरी लग गई है और वो तेरेेे लिए जरूर उसकी तरह कोई सरकारी नौकरी वाला लड़का ढूंढ लेगा” यह बड़बड़ती हुई मां बाहर की ओर चली गई।
इधर मोहन भी सबके बीच ऐसे बैठा था जैसे कन्हैया को गोपियोंं ने घेरा हो और उससे सवाल तो ऐसे पूछे जा रहे थे जैसे अनंत ब्रह्मांड का ज्ञाता वही हो ।
जो वह कहता लोग उसे मान लेते जैसे उसका कहां पत्थर की लकीर हो अब गांव देहात में जब भी कोई मांगलिक कार्य या कोई समारोह होता ,मोहन को वहां अतिथि के रुप में बुलाया जाता है क्योंकि गांव के लोगों के लिए तो उसकी यह नौकरी पाना मतलब ईश्वर का साक्षात आशीर्वाद ही है वह जहां भी जाता अपनी धॏस और अकड़ दिखाता।
गांव के भोले-भाले लोगोंं के बीच वह कभी-कभी अतिशयोक्ति भी कर देता उस ने तो यह तक कह दिया था कि कलेक्ट्रेट मेंं मेरे काम को देख कर मुझेे बाबू का काम भी देते हैं।
वह कहता, “भाई हम पढ़े लिखे हैं वह तो हम मजबूरी में चपरासी का काम कर रहे हैं वरना हम तो कलेक्टर के पद के लिए योग्य है अब सब कलेक्टर ही बन जाएंगे तो चपरासी का काम कौन करेगा आखिर चपरासी है तो क्या हुआ? सरकारी तो है ऐसे ही फालतू तो नहीं घूम रहे हालांकि उससे यह सब कोई पूछता नहीं था पर वह आगे बढ़कर अपने ही मियां मिट्ठू बनता था”,असल मेंं दफ्तर भी वह ऐसे बन के जाता था जैसे वहां उसे कलम और दवात का काम हो, दो पहिए के वाहन पर ऐसे तन के बैठता था जैसे कि डॉक्टर ने उसे रीढ़ को सीधा रखकर बैठने की हिदायत दी हो। बड़े बुजुर्गों को वह नमस्कार करना ही भूल गया था बस लोगों से उम्मीद लगता और गिनती में रखता कि कितनों ने उसको आज नमस्कार नहीं किया किसी से भेंट होने पर वह उनके मुंह पर कहने से भी नहीं हिचकीचाता कि उन्होंने उसे सम्मान नहीं दिया।
एक बार तो उसने हद ही पार कर दी किसी विवाह सम्मेलन में संबोधन देने के लिए वह मंच पर ऐसे अकड़ के चल पड़ा जैसे कलफ किया हुआ कुर्ता हो वहां भी उसने अपनी मूर्खता का परिचय दे दिया उसने कहा,”हमें अनाथ और बेसहारा लड़कियों से शादी करके इनको सहारा देना चाहिए हमें खुशी है कि आप लोगों ने ऐसा सम्मेलन आयोजित किया परंतु यह सब हम जैसे सरकारी नौकरी पाने वाले लड़कों के लिए नहीं है हमें तो अपनी बराबरी वालों से ही शादी करनी चाहिए “
वहांं बैठे लोगों की तालियों और ठहाको ने उसकी मूर्खता को जैसे छुपा दिया।
वहांं बैठे लोगों की तालियों और ठहाको ने उसकी मूर्खता को जैसे छुपा दिया।
सरिता को अपने भाई के कथन पर शर्म आई क्योंकि वह भी वहां सम्मेलन देखने गई हुई थी उसने घर जाकर सारी बातें मां को बताई पर माने तो जैसे ठान रखी थी अपने लड़के के खिलाफ कुछ ना सुनने की ।
सरिता अंदर ही अंदर खींज रही थी उसे भी अपनी बात मनवाने थी पर वह ऐसा क्या करती, वह तो अभी बारहवीं में ही थी उसके मन में विचारो का वेग
उठता और शांत हो जाता।
“चपरासी ही तो है कोई प्रशासनिक अधिकारी तो नहीं जो उसकी ऐसी मूर्खतापूर्ण बातों पर भी इतना सम्मान क्यों? वह सरकारी नौकरी पर है क्या?सिर्फ यही एक वजह है हाँ शायद यही एक वजह थी”
खैर इन सबके बीच एक साल बीत गया। मोहन की शादी भी एक अच्छे परिवार में और उससे ज्यादा पढ़ी लिखी लड़की मंगला से हुई दान दहेज के मामले में मोहन की मां ने अपनी सारी हसरते निकाल ली मानो सरिता के लिए दहेज का जुगाड़ भी उसने मोहन की शादी में मनमाना दहेज मांग कर लिया हो।समाज का पहला लड़का जो सरकारी नौकरी पर था, लड़की के पिता ने मोहन की मां की सारी बातें मान कर अपनी बेटी का विवाह कर दिया।
शादी के बाद मोहन कभी भी अपनी पत्नी की बात नहीं सुनता था जैसा व्यवहार वह अपनी बहन के साथ करता आया था ठीक वैसा ही व्यवहार वह अपनी पत्नी के साथ भी करने लगा जब भी किसी गलत बात पर उसकी बहन और पत्नी उसे टोकती या समझाती , तब वह सिर्फ सरकारी नौकरी की धौंस दिखाता और कहता,” तुम लोग अपनी पढ़ाई लिखाई का ज्ञान अपने तक रखो हमें ना समझाओ हम महीने का पन्द्रह हजार लेते हैं वह भी बिना पढ़े समझी ना “
अब वह सरिता से बहुत चिढ़ने लगा था उसकी बेइज्जती और ताना मारने का वह एक मौका ना छोड़ता ।मां से भी कहता ,”मां अब इसका निकाला करो बहुत हो गया अब हमसे ना हो पाएगा यह हमारे खिलाफ तुम्हारी बहू के कान भर्ती है वरना कल की आई ये तुम्हारी बहू हमें समझाएगी “और वैसे भी पन्द्रह हजार में हम किस-किस का पेट पाले”
यह बात सरिता के दिल को जैसे चीर गई वह मन ही मन मां को कोसती,” माँ मोहन को कुछ कहती क्यों नहीं ?क्या वह भी बेबस है? एक सरकारी नौकरी के तले मां क्यों दबी हुई है?यह सब सवाल सरिता को झंझोड़ देते।
मोहन अब सरिता की शादी के विषय में माँ से कुछ नहीं कहता उसे लगता कहीं किसी प्रकार की सहायता उसे शादी में ना करनी पड़ जाए। इस बात को सोचकर वह पहले ही अपनी आंखें चुरा लेता बहुत कह सुनकर एक लड़का सरिता के लिए देखा गया, संजय नाम था उसका जो सरकारी नौकरी पर तो नहीं था पर हां एक प्राइवेट नौकरी कर अपना गुजरा कर रहा था अकेला था ,ना मां थी ना पिता इसीलिए सरिता की मां ने अपनी लड़की का वहा विवाह करना उचित समझा। मां ने जैसे तैसे सरिता की शादी संजय से कर दी क्योंकि भाई से तो एक ढ़ेले की उम्मीद ना थी और ना ही उसने कोई मदद की बहू से जो लालचवश दहेज में ज्यादा सामान मांग लिया था वह भी बहू ने नहीं दिया अब वह भी अपने पति की नौकरी पर अकड़ने लगी थी।
सरिता शादी के बाद और गुमसुम सी हो गई वह संजय से बस हां ना में बात करती, इधर संजय भी बहुत शर्मीला और शांत था वह सरिता को कभी किसी बात के लिए ताना नहीं मारता था कम से कम इस बात से सरिता ससुराल में सुखी थी लेकिन सरिता की उदासी संजय से देखी नहीं गई उसने एक दिन सरिता से कहा,” तुम घर में अकेली रहती हो तुम चाहो तो आगे अपनी शिक्षा पूरी कर सकती हो या फिर कुछ और जैसा तुम्हें ठीक लगे “
पढ़े लिखे होने की वजह से संजय भली भांति जानता था कि सरिता के मन में क्या चल रहा होगा वह उसकी भावनाओं का सम्मान करता था संजय की बात सुन चुपचाप सी सरिता अचानक से खिल उठी और बोली,” क्या मैं अपनी पढ़ाई पूरी कर सकती हूं संजय बोला ,”हां बिल्कुल तुम स्नातक हो आगे क्या करना चाहती हो वह बोली मैं स्नातकोत्तर करके प्रशासनिक सेवा की तैयारी करना चाहती हूँ “यह बोलकर वह सहम सी गई जैसे उस उसने कुछ गलत कह दिया हो यह सुन संजय ने उससे कहा,” मैं तुम्हारे हर निर्णय में तुम्हारे साथ हूँ “
सरिता की खुशी का ठिकाना ना रहा उसने कभी सोचा ना था कि उसे शादी के बाद भी पढ़ने का मौका मिलेगा अब सरिता की पढ़ाई फिर से शुरू हो गई घर का काम फटाफट निपटा के वह कॉलेज जाती इधर मोहन को सरिता के कॉलेज जाने की खबर लगी तो उसने संजय के कान भरना चाहे।
यह कैसा भाई था जो अपनी बहन की उन्नति पर उससे इतनी ईर्ष्या रख रहा था क्या सिर्फ इसलिए क्योंकि वह उससे ज्यादा पढ़ी लिखी थी?
सरिता तो संजय से भी ज्यादा पढ़ी लिखी थी पर संजय ने मोहन की बात ना मानी ।साल बीत गया ,सरिता अब प्रशासनिक सेवा की तैयारी कर रही थी। उसने दिन रात एक कर दिया संजय ने भी सरिता का हमेशा ध्यान रखा उनकी कोई संतान नहीं थी क्योंकि संजय चाहता था पहले सरिता अपना लक्ष्य प्राप्त करें इधर मोहन की तीन बेटियां थी जिनके पैदा होने का दोष अब वह अपनी पत्नी मंगला को देता और उस से मारपीट करता ।माँ के कुछ बोलने पर वह माँ को ही घर से निकालने की बात करता और सरिता की पढ़ाई का ताना अब वो माँ को भी देता माँ अब अकेले में रोती और बेटी के साथ किए अपने बुरे बर्ताव का मलाल करती वह अब चुपचाप माला फेरती और टूटी खाट पर अपने बुढ़ापे के दिन गुजारती ।
सरिता ने प्रशासनिक सेवा की परीक्षा पास कर ली पर उसने यह खबर अपने मायके तक नहीं पहुंचने दी क्योंकि वह नहीं चाहती थी कि उसका भाई इस बात की खीज मां पर निकाले।वह कलेक्टर बन गई और वह उसी कार्यालय में पदस्थ हुई जहां उसका भाई था।
“कलेक्टर साहिबा आ रही है अरे कोई उनकी मेज ठीक करो, पानी रखो, उस कुर्सी पर सफेद कपड़़ा बदलो” वहा हड़़कंप सा मच गया ।
इधर मोहन दूसरे मुलाजिमों से बात कर कहने लगा,” भाई आदमी तो ठीक है बस औरत जात जब राज करती है तो टीस सी चुभ जाती है यह घर में झाड़ू करकट करती ही अच्छी लगती है हा हा हा हा”
उनके ठहाको को सफेद गाड़ी के आने से विराम लग जाता है मोहन जल्दी से गाड़ी का दरवाजा खोल भला मानस बन आज्ञा लेने को सीधा खड़ा हो जाता है सरिता जो ही कदम बाहर निकालती है मोहन उसे देख हक्का-बक्का रह जाता है सरिता हल्की सी मुस्कान दे अंदर की ओर बढ़ जाती है उस दिन मोहन अपना सारा गुस्सा माँ पर उतार कहता है ,”यह लड़की जात को बचपन से ही नहीं पढ़ाना लिखाना चाहिए सरिता मुझसे बदला लेने के लिए कलेक्टर बन उसी कार्यालय में क्यों आई मैं कह देता हूं माँ मेरा उससे कोई लेना दना नहीं है और ना ही तुम्हारा ,मुझे पता है वो सिफारिश से कलेक्टर बनी है इतनी होशियार तो नहीं थी “
“मेरी बेटी हमेशा से ही बहुत होशियार थी पर मैंने ही उसे कभी आगे बढ़ने नहीं दिया तेरी वजह से,आज उसने हमारा नाम रोशन कर दिया,” मां बोली,
“तो उसके पास ही रहो यहां क्यों हम पर बोझ बन रही हो” बड़बड़ करता मोहन अंदर चला गया और पत्नी से बहस कर उसे पीटने लगा मोहन अंदर ही अंदर सरिता को रोज कार्यालय में देख खीजता था उसके साथ के अन्य कर्मचारी धीरे-धीरे जान गए कि कलेक्टर साहिबा मोहन की छोटी बहन है कुछ मोहन की इज्जत करते तो कुछ व्यंग करते ,”अरे वाह मोहन भाई रिश्तेदारों का नजदीक रहना अच्छा होता है पर तुम्हारे साथ तो बहुत ही अच्छा है जब चाहो तब छुट्टी मांग लेना और चाय पानी की मेज साफ करते करते कुछ हमारी भी सिफारिश कर देना यह सब बातें मोहन को अंदर ही अंदर और जला रही थी ।
इधर सरिता के गांव में उसके कलेक्टर बनने की खबर फैलने से मोहन के घर में बँधाइयों का तांता लग जाता है गांव के सरपंच ने सरिता को सम्मानित करने के लिए गांव में एक समारोह आयोजित किया जिसका आमंत्रण उन्होंने सरिता को दिया ।सरिता ने बेझिझक इसको स्वीकार कर लिया क्योंकि वह ऐसे ही आमंत्रण की राह देख रही थी समारोह का पंडाल खुले मैदान में दूर तक लगाया गया पंडाल हवा के थपेड़ों से उड़ रहा था पर मजबूती से खंभों से बंधा हुआ था। मंच पर पुष्प मालाएं रखी हुई थी और कुछ पुष्पों की रंगोली छोटी बालिकाएं बना रही थी। सरपंच जी की निगाहे राह पर सफेद गाड़ी को ढूंढ रही थी जैसे ही दूर से उन्हें कलेक्टर साहिबा का काफिला दिखा वो पुष्पों की माला लिए द्वार पर तैयार खड़े हो गए जैसे ही कलेक्टर साहिबा ने बाहर कदम रखा सरपंच जी ने माला अर्पण कर सरिता का स्वागत किया और मैडम जी कह कर संबोधित किया ।
इस पर सरिता बोल उठी,” चाचाा जी मैं आज भी वही सरिता हूं कृपया मुझे सरिता ही बुलाए “सरिताा की बात सुन सरपंंच जी की आंखोंं में आंसू आ गए उन्होंनेे सरिता को मंच पर स्थान ग्रहण करवाया। सभा में उस गांव के साथ-साथ दूसरे गांव के लोग भी एकत्रित हुए थे क्योंकी इतने बड़े पद पर एक लड़की का पहुंचना उन सबके लिए एक अचंभा ही था ।
इस पर सरिता बोल उठी,” चाचाा जी मैं आज भी वही सरिता हूं कृपया मुझे सरिता ही बुलाए “सरिताा की बात सुन सरपंंच जी की आंखोंं में आंसू आ गए उन्होंनेे सरिता को मंच पर स्थान ग्रहण करवाया। सभा में उस गांव के साथ-साथ दूसरे गांव के लोग भी एकत्रित हुए थे क्योंकी इतने बड़े पद पर एक लड़की का पहुंचना उन सबके लिए एक अचंभा ही था ।
सरिता के पति के साथ- साथ वहां सरिता की माँ, भाभी ,भतीजीयां और उसका भाई भी मौजूद था, जो वहां आने में आनाकानी कर रहा था पर उसे डर था कि अगर वह वहां नही गया तो कहीं उसकी नौकरी पर ना बन आएं क्योंकि सरिता उसके कार्यालय में अधिकारी हैं, सरपंच जी के मंच पर आने के बाद एक बार फिर उसका सम्मान पुष्पमाला और गुलदस्ते से किया गया और यह सम्मान उसके पति और मां ने किया यह देख सरिता भावविभोर हो गई उसका गला भर आया उसने जैसे तैसे खुद को संभाला ।
सभा में कानाफूसी शुरू हो गई, वहां बैठी महिलाएं सरिता का बखान कर रही थी और कुछ उससे जल रही थी कुछ कह रही थी,” ऐसी भी क्या नौकरी के गहने जेवर भी ना खरीद पाओ ,ना सिंदूर, ना चूड़ियां यह भी कोई शादी है पति को भी दबा कर रखती होगी बड़ी आई कलेक्टर साहिबा हूंह” तो कुछ लोग कह रहे थे ,”अरे चाय नाश्ता तो मिलेगा ना यहां हम यहां उसी के लिए आए हैं”
सरपंच जी मंच पर आ सब को शांत करवाते हुए सरिता के बारे में कुछ परिचय उन लोगों को देते हैं जो इस सभा में नए थे इसके बाद वह सरिता को अपने अनुभवों से लोगों को प्रेरणा देने के लिए माइक के पास बुलाते हैं ।करतल ध्वनि के बीच सरिता माइक के पास आ सब को संबोधित करती है,” चाचा जी ने मेरा बहुत मान बढ़ा दिया ,हां आपके सरपंच जी को मैं चाचा जी ही कहती हूं और आगे भी कहूंगी यहां बैठे सभी लोगों को मेरा नमस्कार और मैं सबकी आभारी हूं कि मुझे सुनने के लिए आज यहां सब एकत्रित हुए , मैं आपकी वही बच्ची हूं जिसे आपने बचपन से देखा है आज मैडम या कलेक्टर साहिबा ना कहें ,चाचा जी ने मुझे प्रेरणा देने के लिए मंच पर बुलाया है प्रेरणा का पता नहीं परंतु मैं अपने विचार आपके समक्ष जरूर रखूंगी जो मैं हमेशा से बोलती आई हूं मेरा मकसद समाज कि किसी भी विशेष वर्ग को इंगित करना या नीचे दिखाना या उनकी अवहेलना करना नहीं, अपितु यह बतलाना है कि हम लड़का लड़की में फर्क क्यों करते आ रहे हैं ?क्यों हम बेटियों को पढ़ाने से कतराते हैं? और सारी उम्मीदें बेटों से ही करते हैं जबकि हम भली भांति जानते हैं कि लड़कियां अपने मां पिता की चिंता सबसे ज्यादा करती हैं। वहीं बेटी या बहन आगे चलकर बहू और मां भी बनती है इतने किरदार निभाने वाली बेटी को पढ़ने से क्यों रोका जाता है हम उसे पढ़ाने से क्यों कतराते हैं? क्योंकि लोगों ने मानसिकता बना ली है कि पढ़ा लिखा के क्या करना है जाना तो उसे दूसरे घर ही है चूल्हा चौका ही करना है वही सीखे पहले, लो भाई तो चूल्हा चौका भी सीख लेती है बेटियां अब आगे क्या ?कढ़ाई बुनाई से लेकर घरेलू कामकाज तक सीखने के लिए उसे बाध्य कर दिया जाता है क्यों? क्या भाई की किताब है देख उसका मन नहीं करता पढ़ने का? पर उसका मन पड़ेगा कौन घर के लोग ही ना?
” मैंने बचपन से यह भेदभाव अपने ही घर में पाया है परंतु पिताजी ने मेरा साथ दिया ।जब तक वह थे तब तक मैं पढ़ाई की तरफ से बेफिक्र थी पर पिता जी के आकस्मिक निधन से मैं जैसे टूट गई मुझेे लगा अब मैं कभी आगे ना बढ़ पाऊंगी परंतु सरपंच चाचा जी ने मेरी मां को हमेशा समझायाा कि वह मेरी पढ़ाई को ना रोके और मुझे आगे पढ़ने दे परंतु मेरे भाई साहब को मेरा पढ़ाई करना हमेशा से खटकता था।
नौकरी पाना मेरा उद्देश्य नहीं था मेरा उद्देश्य समाज में अपने आप को लड़कों के बराबरी का दर्जा दिलवाना था जो मैंनेेेे कर दिखाया और यहां बैठी कई बेटियांं ऐसा बनना चाहती होंगी इस उद्देश्य मेंं मेरा साथ मेरे पति नेे दिया मेरा भाग्य अच्छा था जो संजय जी मेरे जीवन में आए और हर छोटी बड़ी मुश्किल को उन्होंने अपने ऊपर ले लिया और मुझे सही राह दिखाई। मैंं उनका जितना भी धन्यवाद करूं कम है मैं आप सब से अपेक्षा रखती हूं कि आप भी अपनी बेटियों को पढ़ाएंगे और आगेे बढ़ाएंगे। सरकार ने बहुत सी योजनाएं शुरू की है लड़कियोंं की शिक्षा के लिए उनका लाभ उठाएं और अधिक जानकारी क लिए आप मुझसे कभी भी संपर्क कर सकते हैं चाचा जी आपको समझा देंगेे ।इन्ही शब्दों के साथ अब मैं आप सब लोगों से विदा लेना चाहूंगी क्योंकि मुझे एक प्रशासनिक कार्यक्रम में उपस्थित होना है आप सबका बहुत-बहुत धन्यवाद”
यह कहकर सरिता मंच सेेे उतर कर जाने लगी सरपंच जी ने उससे जलपान करनेे का आग्रह किया जिसे उसनेेे विनम्रता पूर्वक अस्वीकार कर दिया। जाते हुए उसने कुछ महिलाओं की आवाज सुनी ,”अरे जल्दी जल्दी नाश्ता खाओ और लड्डू बांध के घर ले चलो बहुत काम पड़ा है इस चाय नाश्ते के लिए इतनी देर बैठना पड़ा”
मोहन भी दूर खड़ा अपनी बहन की बातों से सहमत नजर आ रहा था लेकिन आत्मग्लानि के कारण उसे बहन के सामने आने में शर्म आ रही थीउसने अपनी मां से कहा,” सरिता को घर नहीं बुलाना है क्या? शादी के बाद वह घर नहीं आई”, अपनी बेटियों के सर पर हाथ रख उसने कहा,” बिटिया जरूर पराई हो जाती है पर वह अपनों को कभी नहीं भूलती” मोहन की बात सुन मां की आंखों में खुशी के आंसू आ गए इधर लोग चाय नाश्ता खत्म कर पाते उससे पहले ही सरिता की गाड़ी धूल उड़ाती हुई नजरों से ओझल हो गई ।
गाड़ी में बैठी- बैठी सरिता उन महिलाओं के संवाद को याद कर सोचने लगी भेदभाव की सामाजिक कुरीति पर लोगों को आत्मचिंतन करना जरूरी है। मैं सोचती थी सरकारी नौकरी पाकर अपने विचारों को लोगों तक पहुंचा पाऊंगी और वह मेरी बातों का अनुसरण भी करेंगे क्योंकि यही तो मैं अपने घर में दिखती आई थी पर नहीं बात सरकारी नौकरी की नहीं है ,लड़का लड़की के भेदभाव की है मोहन लड़का है इसीलिए उसकी बातें सुनी जाती रही और मैं लड़की इसीलिए मेरी बातों को अनसुना किया गया ।मैं समझती हूं सरकारी नौकरी के बड़े या छोटे पद से इन लोगों की मानसिकता को सुधारा नहीं जा सकता, ना जाने कितनी ही सरिताए है जो रोज अपने अधिकारों के लिए अपने ही घर में जद्दोजहद कर रही होंगी अभी उन्हें और लड़ना होगा घर में अपनी जगह के लिए ,समाज में अपनी पहचान के लिए ।
अगर ऐसी सरिताओ के भाई मोहन जैसे ही है तो ईश्वर उन्हें संजय जैसे जीवन साथी भी दें ,जो सफलता छूने की उनकी हर उड़ान को हौसला दे सके…….
18 comments
शुभकामनाएं,
बहुत खूब लिखा, पढ़ के दिल खुश होगया।
ऐसे ही लिखते रहो सुमन।
शुभकामनाएं सुमन जी आपको, आप बहुत अच्छी शब्दोंं मैं कहानी लिखते हो आपके इस कहानी के शब्दोंं को पढ़कर बहुत कुछ सीखने को मिला मुझे
शुभकामनाएं सुमन जी आपको, आप बहुत अच्छी शब्दोंं मैं कहानी लिखते हो आपके इस कहानी के शब्दोंं को पढ़कर बहुत कुछ सीखने को मिला मुझे
धन्यवाद ललित ……….
Such a beautiful story #SumanRajputDi… ?
धन्यवाद पुनीत जी……
Thanks pooja…
Nice story, well written, good going, all the best?
Thank u shweta….
Hey Suman,
Congratulations for your first blog…..It seems really interesting…..Keep writing.???
All The Very Best
Thank you saksham…
Congratulations 4 ur first blog…nice story line up wid reality of community….??
सुमन..
सबसे पहले आपकी प्रथम कहानी के लिए बहुत बहुत बधाई। मेरी अनंत शुभकामनाएँ। ???
आपकी कहानी समाज का आइना है.. आपकी कहानी जैसे ही शुरू हुई मेरी आखों के आगे जैसे वो एक फ़िल्म की तरह चलने लगी।
आपका लेखन कौशल एक निपुण लेखक की तरह है।
मुझे बहुत पसंद आयी कहानी। ??
आगे भी आप ऐसे ही लिखती रहे। शुभकामनाएँ। ??
Thanks Bharat singh
Thanks Ram Bhaiya
Keep on sharpening your creative skills its really an entertaining story……will wait for next one
Thank u so much vivek ji
Awesome story