जिस अग्नि के फेरे थे लिए।
उस अग्नि ने ही भस्म किया।।
मैं कैसे उसको देव कहूं।
जिस देव ने मुझ को नष्ट किया।।
9 दिन को जब वह आती है।
तो घर-घर पूजी जाती है।।
जो जीवन भर को आती है।
वह क्यों सताई जाती है।।
जिस घर में जन्म वो लेती है।
वह रहती वहां पर आई है।।
जिस घर में भेजी जाती है।
वह जीती वहां पर आई है।।
क्या है कोई यहां वीर पुरुष।
जो मुझको यह समझाएेगा।।
नारी का घर कहां कौन सा है।
क्या मुझको कोई बताएगा।।
अपने ही लहू से सीख कर जो।
कुल को तो वही चलाती है।।
फिर अबला क्यों कहलाती है।
वह क्यों जलाई जाती है।।
वह भी है बराबर के दोषी।
जो नारी को सताते हैं।।
जो घर इनका चलाती है।
वह क्यों ठुकराई जाती है।।